
गरीबी के चलते ज्यादातर लोग अपनी इच्छाओं को दबा लेते हैं। कुछ लोग इस मजबूरी के कारण अपनी जिंदगी से भी मुंह मोड़ लेते हैं लेकिन मजबूरी में भी अपने हौंसले बुलंद रखना ही असली जीत है। ऐसी ही खिलाड़ी हैं जूही झा, जिन्हें मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से खेल के क्षेत्र में दिया जाने वाला प्रतिष्ठित विक्रम पुरस्कार से वर्ष 2018 में नवाजा गया था। लेकिन जूही अभी तक बेरोजगार हैं।
लगातार लगा रहीं हैं सरकारी दफ्तरों के चक्कर
जूही के घर की आर्थिक हालत काफी खराब है। जूही पिछले दो साल से नौकरी के लिए लगातार सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही हैं। सरकारी नियम के तहत तो विक्रम पुरस्कार विजेताओं को शासकीय नौकरी मिलती है। पर जूही को अभी तक यह नौकरी नहीं मिली।
यह है पूरी कहानी
मध्य प्रदेश के इंदौर में पैदा हुई जूही झा एक खिलाड़ी हैं। जूही के पिता सुबोध कुमार झा सुलभ शौचालय में काम करते थे। घर की आर्थिक हालत खराब थी, इसलिए सुलभ शौचालय के भीतर ही एक कमरे में रहते थे। घर में जूही को मिलाकर पाँच लोग का परिवार था। घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए जूही ने खो-खो खेलना शुरू किया और कई पदक जीते। इतना ही नहीं तात्कालीन खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने जूही को विक्रम पुरस्कार से भी सम्मानित किया था।
सुलभ शौचालय में रहीं 12 साल
जूही के घर की आर्थिक हालात ठीक नहीं थी। पिता की नौकरी इंदौर नगर निगम के पास गंजी कंपाउंड में सुलभ शौचालय में थी। शौचालय के भीतर एक कमरा भी था, जिसमें उनका पांच लोगों का परिवार रहता था। जिससे आने वाली बदबू से राह चलते लोग भी अपना नाक बंद कर लेते हैं, वहां जूही और उनके परिवार ने अपनी जिंदगी के 12 साल बीता दिए लेकिन तारीफ की बात यह है कि इस हालत में भी जूही ने खो-खो खेलना नहीं छोड़ा।
जूही की उपलब्धियां
कहते हैं कि समय की मार के आगे किसी का जोर नहीं चलता। जूही ने खो-खो के खेल में बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया है। वे अब तक 8 सीनियर नेशनल, 7 जूनियर नेशनल, 4 सब जूनियर, 3 स्कूल्स नेशनल (1 रजत), फेडरेशन कप (1 कांस्य), एशियन खो-खो (1 स्वर्ण), वेस्ट झोन (1 कांस्य) और विक्रम पुरस्कार हासिल कर चुकी हैं।
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