
घरेलू हिंसा व्यक्ति को भीतर तक घायल कर देती है और मानसिक तौर पर बीमार बना देती है, जिसका अहसास पीड़ित व्यक्ति को काफी समय बाद होता है। जब तक इतनी देर हो चुकी होती है कि वह गहरे मानसिक तनाव में डूब जाता है और कई अनचाही समस्याओं से खुद को घिरा पाता है। राष्ट्रीय महिला आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन लागू होने के बाद से देश में घरेलू हिंसा की घटनाओं में दोगुनी बढ़ोत्तरी हुई है। कोरोना के चलते मार्च से लॉकडाउन चल रहा है, हालांकि अब अनलाॅक की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। लेकिन बीते 5 महीनों में लॉकडाउन के चलते दिमाग की स्थिरता ने कई घर उजाड़े, तो कई हत्यारे भी पैदा हुए हैं।
घरेलू हिंसा में आज की कहानी हैदराबाद से है, जहाँ एक महिला 5 माह की प्रेग्नेंट थीं। जब वह अपनी बहन से फोन पर बात कर रहीं थीं तो पति ने उनका फोन छुड़ा लिया और चेक करने लगा कि वह किससे बात कर रही है। फिर उससे से फोन हमेशा के लिए ले ही लिया गया। लाॅकडाउन के पहले भी महिला के साथ मारपीट होती थी, लेकिन लॉकडाउन जितनी नहीं। महिला का पति नामचीन कंपनी में नौकरी करता था, लेकिन वह अपनी पत्नी पर शक करता था। इसी कारण से उसने महिला से फोन छीन लिया था और मारपीट करने लगा।
एक दिन महिला ने पूरी बात एक चिट्ठी में लिखकर अपने घर के सामने वाली मेडिकल स्टोर पर दे दी। जिसमें उसकी बहन का नंबर भी लिखा हुआ था। मेडिकल स्टोर के मालिक ने महिला के बहन के नंबर पर कॉल किया और पूरी बात बताई। बहन को बात पता चलते ही उसने पुलिस में शिकायत कर दी। पुलिस अगले दिन महिला के घर पहुंची लेकिन ससुराल पक्ष के दबाव के आगे महिला कुछ बोल ना सकी और उसने इस बात से भी मना कर दिया कि उसने ही कोई शिकायत करवाई है। महिला की बहन ने महिलाओं के लिए काम करने वाले एनजीओ ‘Invisible Scars’ को पूरी बात बताई, ताकि उनकी बहन की काउंसलिंग हो सके। हालांकि, महिला अभी ससुराल में ही है, इसलिए उसकी काउंसलिंग भी नहीं हो पा रही है।
वहीं महिलाओं के लिए काम करने वाले एनजीओ ‘Invisible Scars’ की फाउंडर एकता विवेक वर्मा कहती हैं कि ‘लॉकडाउन के पहले फेज में हमारे पास हर हफ्ते दो से तीन मामले घरेलू हिंसा के आए। अधिकतर महिलाएं कॉल नहीं कर पा रहीं थीं, क्योंकि वे निगरानी में थीं। इसलिए फेसबुक पर मदद के लिए बहुत मैसेज आ रहे थे। आगे एकता कहती हैं कि, हिंसा सिर्फ महिलाओं के साथ ही नहीं हुई बल्कि पुरुषों के साथ भी हुई है।’
एकता बताती कि, पिछले हफ्ते ही नागपुर से एक 28 साल के लड़के का कॉल आया था। जिसे उसकी ही मां और बहनों द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है, क्योंकि लड़के की नौकरी छूट गई है। उसके पास कुछ काम नहीं है। वह पढ़ा भी 12वीं तक ही है। नौकरी जाने के बाद जब वो दिनभर घर में मां और बहनों के साथ रहने लगा तो उसे ताने सुनाए जाने लगे और वह दिमागी तौर पर बेहद परेशान हो गया। उसने हमारे पास कॉल किया तब हमने उसे अलग हॉस्टल में रखने का प्लान बनाया। तीन महीने तक एनजीओ उसका खर्चा उठाएगा। उसकी काउंसलिंग करवाई जाएगी और उसे ट्रेनिंग भी दी जाएगी। जिससे वह कोई गलत कदम न उठाए और धीरे-धीरे फिर से कुछ काम शुरू कर सके।
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