भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी (Line of Actual Control) है। यह दुनिया की सबसे लंबी विवादित सीमा है। इस सीमा का एक लंबा इलाका काफी दुर्गम है और दोनों देशों की सेनाएं इस पर नियंत्रण करने की कोशिश में रहती हैं। भारत-चीन सीमा के कई इलाकों को दोनों पक्षों ने विवादास्पद और संवेदनशील माना है। चीन हमेशा से ही अरुणाचल प्रदेश जैसे भारत के कई सरहदी राज्यों पर हक जमाने की कोशिश करता रहा है। इसे लेकर दोनों देशों में कई बार सघर्ष भी हो चुका है। लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हुई हालिया झड़पें भी सीमा विवाद का ही परिणाम हैं। साल 2014 में देश की बागडोर संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान और चीन से लगती सरहदों को मजबूत करने का फैसला किया था। इसके तहत सरहद तक पहुंचने के लिए सड़क, पुल और सुरंग बनाने की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई और इसका जिम्मा सौंपा गया सीमा सड़क संगठन यानी बीआरओ (Border Roads Organisation) को। भारत इन दिनों चीन की सीमा के पास कई तरह के रणनीतिक दृष्टि से अहम निर्माण कार्य कर रहा है। वहीं चीन सीमा पर अपनी पकड़ कमजोर होते देख बौखला उठा है, इसी के कारण वह आक्रामक रवैया दिखा रहा है।

भारतीय सीमा पर बन रही सड़क से चिढ़ा चीन
भारत और चीन के बीच हालिया विवाद लद्दाख में बन रही एक सड़क के कारण है, जिस पर चीन ने ऐतराज जताया है। उसने कहा है कि भारत इस सड़क का ज्यादा इस्तेमाल न करे। वहीं भारत ने दो टूक कहा है कि वह एलएसी के इस तरफ यानी अपने हिस्से में सड़क निर्माण का काम जारी रखेगा। 255 किलोमीटर लंबी यह दरबूक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (DSDBO) सड़क लेह से लेकर अक्साई चीन की सीमा से सटे दौलत बेग ओल्डी तक जाती है। चीन की सीमा से करीब नौ किमी दूर तक यह सड़क भारत के लिए काफी अहम है क्योंकि यह डीबीओ सीमा पोस्ट तक पहुंचती है। 2019 तक इस सड़क के 220 किमी हिस्से का निर्माण पूरा हो चुका था और बाकी काम जारी है। भारत-चीन सीमा का ज्यादातर हिस्सा पहाड़ी इलाकों में है। ऐसे में युद्ध की स्थिति में उसी देश को लाभ मिलेगा, जिसकी सेना और रक्षा संबंधी सामान जल्द से जल्द सीमा पर पहुंच पाएंगे। पहाड़ी इलाकों में अक्सर मौसम खराब होने के कारण हवाई रास्तों से भी सेना और सामान पहुंचाने में दिक्कत होती है, इसलिए सड़क मार्ग को ज्यादा अहम माना जाता है।
भारत के लिए सामरिक महत्त्व वाली सड़क है DSDBO
लद्दाख की राजधानी लेह से चीन की सीमा पर स्थित काराकोरम पास तक पहुंचने वाली DSDBO सड़क के इस साल तक पूरा हो जाने की उम्मीद है। 14 हजार फीट की ऊंचाई पर बन रही यह सड़क दरबूक से लद्दाख के अंतिम गांव श्योक तक जाती है। लद्दाख को चीन के झिनजियांग प्रांत से अलग करने वाले काराकोरम पास और श्योक के बीच दौलत बेग ओल्डी है। 16 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित यह पहाड़ी मैदान भारतीय वायुसेना की आपूर्ति के लिहाज़ से एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड (ALG) की लोकेशन है। दौलत बेग ओल्डी भारत का सबसे उत्तरी कोना है और वहां तक सड़क बनाना भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इस सड़क से भारत अक्साई चीन, चिप चैप नदी और जीवन नल्ला से सटे इलाकों तक सीमाओं पर नजर रख सकता है। इस सड़क से सेनाओं की जल्द तैनाती में भी मदद मिलेगी।

भारत की सड़क पर चीन को ऐतराज क्यों
गलवान घाटी की सुरक्षा के लिहाज से भी DSDBO सड़क अहम है और इस सड़क के कारण ही भारत लगातार यहां गश्त कर पा रहा है। चीन ने अब तक सीमाओं पर जो पोस्ट बनाई है, उनके जरिए वह गलवान घाटी पर पूरी तरह से नजर रख सकता है। इस सड़क के बनने के बाद भारत भी इन इलाकों पर पूरी तरह से नजर रख पाएगा और चीन को इसी बात पर ऐतराज है। वह नहीं चाहता कि भारत इन इलाकों में किसी तरह का सामरिक निर्माण करे। इसी के कारण सिक्किम और लद्दाख के पास कई इलाकों में तनाव बढ़ता जा रहा है और दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी (Line of Actual Control) के पास अतिरिक्त बलों की तैनाती कर रहे हैं। भारत अपनी सीमा के अंदर ही चीन का सामना करने के लिए कुछ रणनीतियां बना रहा है, जिसे देखकर चीन का पारा चढ़ गया है। इसी का नतीजा है दोनों पक्षों के बीच इन इलाकों में कुछ दिनों पहले हुई दो हिंसक झड़पें। कुछ दिनों पहले पता चला था कि चीन ने गलवान घाटी इलाके में भारी संख्या में तंबू गाड़े हैं, जिसके बाद से ही भारत वहां कड़ी नजर बनाए हुए है। चीन के आक्रामक तेवरों ने न केवल भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को सक्रिय कर दिया है, बल्कि वे पहले से ज्यादा तैयारी के साथ सीमा पर डटे हुए हैं। भारत ने लद्दाख से लगी सीमा पर अपने सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी है।
साल 2000 में शुरू हुआ था सड़क का निर्माण
DSDBO सड़क की योजना साल 2000 में शुरू हुई और दो साल में इसका निर्माण पूरा होना था। फिर 2014 तक की समय सीमा तय की गई। इसके बाद 320 करोड़ रुपए की लागत वाली इस परियोजना पर इसलिए पानी फिर गया क्योंकि इसका डिज़ाइन श्योक नदी के डूब क्षेत्र में आ गया था। इसके बाद सड़क का काम दोबारा शुरू किया गया। सिंध नदी के बेसिन में बहने वाली श्योक नदी में हर साल बाढ़ आने का खतरा रहता है। साथ ही यहां बर्फबारी का भी जोखिम रहता है, इसलिए इस बात का पूरा ध्यान रखा जा रहा है कि दौलत बेग ओल्डी तक बनाई जा रही सड़क हर मौसम में इस्तेमाल के लायक हो। दौलत बेग ओल्डी के पश्चिम में गिलगित बाल्टिस्तान है, जहां चीन और पाकिस्तान की सीमाएं मिलती हैं। यह पूरा इलाका इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यहां यानी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में चीन फिलहाल चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर बना रहा है, जिस पर भारत ऐतराज जता चुका है।
सीमा को लेकर दोनों देशों में कई बार हो चुका विवाद
1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद से बीते पांच दशकों में चीन और भारत के बीच सीमा को लेकर कई बार विवाद हो चुका है। 1967 में भारत और चीन के बीच नाथुला और चो ला पर सीमा विवाद हुआ। इस विवाद को थमने में दो महीने लगे थे। 1987 में भारत ने अरुणाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा दिया तो चीन भड़क गया। उसने भारत की सीमा में घुसकर हेलीपैड बनाने की कोशिश की, जिसका भारतीय सेना ने विरोध किया। इसके बाद दोनों सेना ने तनाव कम करने के लिए कदम बढ़ाए। 2017 में डोकलाम को लेकर भारत और चीन में एक बार फिर विवाद हुआ। यह विवाद भारत-भूटान और चीन के ट्राइजंक्शन को लेकर हुआ। चीन ने डोकलाम पठार पर सड़क बनानी शुरू की तो भारतीय सेना ने इसका विरोध किया। 72 दिनों में दोनों देशों के बीच तनाव कम हुआ। विवाद का सबसे ताजा मामला गलवान घाटी में 15-16 जून की रात भारत और चीन के बीच हुई झड़प के बाद ज्यादा बढ़ गया। थे। लद्दाख में 14 हजार फीट ऊंची गलवान घाटी में एलएसी पर हुए इस संघर्ष में भारत के कमांडिंग अफसर समेत 20 जवान शहीद हो गए थे।
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