कोरोनावायरस ने कई देशों में तबाही मचा रखी है। अमेरिका व ब्रिटेन जैसे विकसित देशों ने भी इस महामारी के आगे घुटने टेक दिए हैं। इन दोनों देशों में कोरोनावायरस से होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के डायरेक्टर जनरल Dr. Tedros Adhanom Ghebreyesus ने पिछले हफ्ते एक सीधा सा संदेश दिया था कि इस बीमारी को रोकने के लिए ज्यादा से ज्यादा टेस्ट किए जाएं क्योंकि यही एकमात्र उपाय है जिससे इस महामारी के खतरे को कम किया जा सकता है। ऐसे वक्त में जब इटली, अमेरिका और स्पेन जैसे बड़े देश कोरोनावायरस से लड़ने में कमजोर साबित हो रहे हैं, दक्षिण कोरिया एक बेहतरीन उदाहरण है जिसने इस महामारी पर समय रहते काबू पा लिया।

दक्षिण कोरिया ने कोरोना को कैसे हराया
कोरोनावायरस से दक्षिण कोरिया की लड़ाई काबिलेतारीफ है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, दक्षिण कोरिया में इस बीमारी के 8413 मामले सामने आए हैं और 84 लोगों की मौत हुई है, जबकि 1540 लोग ठीक हो चुके हैं। पांच करोड़ की आबादी वाले इस देश ने कैसे इसे हराया यह जानना बेहद जरूरी है। दक्षिण कोरिया ने बड़े पैमाने पर कोरोना के टेस्ट कराए। यहां तकरीबन 295000 लोगों के सैंपल टेस्ट किए गए। दस लाख की आबादी पर 5200 सैंपल टेस्ट किए गए। इसके बाद ज्यादा से ज्यादा लोगों की जांच की गई। इसके लिए दक्षिण कोरिया ने 50 ड्राइव थ्रू टेस्ट स्टेशन बनाए, जहां लोग आते थे और टेस्ट करा के कुछ ही घंटों में रिजल्ट ले जाते थे। इस पूरी प्रक्रिया में दस मिनट लगते हैं। इतना ही नहीं, दक्षिण कोरिया ने कोरोना टेस्ट के लिए 96 पब्लिक और प्राइवेट लैब का निर्माण भी किया है।
दूसरे देशों ने भी वक्त रहते उठाया कदम
हांग कांग, ताइवान और जापान जैसे देशों ने भी चीन में इस महामारी के फैलते ही इसे रोकने के कदम उठाने शुरू कर दिए, जिससे उन्होंने इस पर काबू पा लिया। ये सभी देश चीन के आसपास ही बसे हैं, लेकिन फिर इन्होंने समय रहते इस महामारी को फैलने से रोक लिया। 2.36 करोड़ की आबादी वाले ताइवान में 24 मार्च तक कोरोना संक्रमण के 215 मामले सामने आए थे जबकि केवल दो मौतों की पुष्टि हुई। उसी तरह 75 लाख की आबादी वाले हांग कांग में 386 मामले सामने आए और दो महीने में चार लोगों की मौत हुई। 12 करोड़ की आबादी वाले जापान में 24 मार्च तक 1140 मामले सामने आए। इन देशों ने भी बड़े स्तर पर लोगों के टेस्ट किए और कोरोना पॉजिटिव लोगों को अलग रखा, जिससे संक्रमण और मौत दोनों मामलों में कमी देखने को मिली। ताइवान ने जनवरी से ही वुहान से आने वाले सभी यात्रियों की स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी। यही काम जापान और हांग कांग ने भी किया। इन सभी देशों ने अपने बंदरगाहों को भी टेंपरेचर वाले यंत्र से लैस किया और विदेश से आने वाले हर यात्री को क्वारंटाइन में रखा।
इटली में क्यों मची सबसे ज्यादा तबाही
कोरोनावायरस ने सबसे ज्यादा कहर इटली में मचाया है। इटली में इसके संक्रमण से मरने वालों की संख्या 12 हजार को पार कर 12,428 हो गई है, जबकि इससे संक्रमित लोगों की संख्या 105,792 हो गई है। यह आंकड़ा दुनिया के किसी भी देश की तुलना में कहीं ज्यादा है। यहां मौतों का आंकड़ा भी चीन से ज्यादा हो गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इसका कारण इटली की जनसंख्या में बुजुर्गों की अधिकता है। यहां की आबादी में 23 फीसदी लोग 65 साल से ज्यादा की उम्र के हैं। यहां हुई मौतों में करीब 87 फीसदी लोग 70 साल से ऊपर की उम्र के थे। शोधों में पता चला है कि बुजुर्गों को कोरोनावायरस के संक्रमण का खतरा युवाओं के मुकाबले ज्यादा है। इसके अलावा डायबिटीज व दिल की बीमारी के मरीजों के भी इस संक्रमण की चपेट में आने का खतरा ज्यादा है।
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लोगों ने नहीं समझी बीमारी की गंभीरता
इटली में कोरोनावायरस से मची तबाही का एक कारण यहां इसे रोकने के अव्यवस्थित उपाय भी हैं। इटली पहला ऐसा यूरोपीय देश था जिसने चीन से आने वाली उड़ानों पर पाबंदी लगाई। यहां की सरकार ने लोगों को इस बीमारी की गंभीरता के बारे में भी बताया, लेकिन फिर भी यहां हालात बेकाबू हो गए। इसका कारण यह है कि सरकार की घोषणाओं और नियमों का सख्ती से पालन नहीं किया गया। बीमारी की भयावहता जानने के बावजूद यहां के लोग सार्वजनिक स्थानों पर बिना किसी डर के घूमते रहे और लोगों से मिलते रहे। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार के इन प्रयासों से पहले ही कोरोनावायरस इटली में प्रवेश कर चुका था, लेकिन न तो सरकार को इसकी भनक लगी और न ही लोगों को। इटली की सरकार ने जब तक इन पर गौर किया तब तक वहां सामुदायिक स्तर पर इस बीमारी का संक्रमण फैल चुका था और कोरोनावायरस महामारी का रूप ले चुका था।
शुरुआती स्तर पर नहीं उठाए गए कदम
इटली में हालात खराब होने का एक कारण यह भी है कि उसने संक्रमण के फैलाव के शुरुआती स्तर पर कड़े कदम नहीं उठाए। वहां की सरकार ने कोरोना प्रभावित इलाकों में यात्राओं को नहीं रोका और न ही संक्रमण के मामलों पर निगरानी रखी। इससे उलट सिंगापुर ने शुरुआत में ही यात्राओं पर रोक लगा दी और कोरोना संक्रमित लोगों की जानकारी इकट्ठा करनी शुरू कर दी। सिंगापुर की सरकार ने संक्रमण के संभावितों की भी लिस्ट बनाई और उन्हें सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने से रोक दिया। इन कदमों ने कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकने में काफी हद तक मदद की।
लॉकडाउन में भी नहीं बरती सख्ती
इस वायरस को फैलने से रोकने में लॉकडाउन भी मददगार साबित हुआ है। लॉकडाउन से सामुदायिक स्तर पर कोरोनावायरस को फैलने से रोका जा सकता है। कई देशों ने पूरी तरह लॉकडाउन कर इस बीमारी को काबू किया है, लेकिन इटली ने इसमें देरी कर दी। हालांकि यहां भी बाद में लॉकडाउन हुआ, लेकिन लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और यात्राएं व कामकाज पर जाना जारी रखा। इटली के मुकाबले भारत में 21 दिन के लॉकडाउन का पालन सख्ती से किया जा रहा है और यहां अभी तक कोरोना के सामुदायिक स्तर पर फैलने के कोई आसार नहीं हैं।
संक्रमण की जांच में नहीं दिखाई तेजी
इटली में कोरोनावायरस की जांच में कमी भी इसके फैलाव का एक मुख्य कारण है। हांग कांग, जापान और सिंगापुर ने ज्यादा से ज्यादा लोगों का टेस्ट करने के लिए खुद टेस्ट किटों का निर्माण किया, जबकि इटली ने इस मामले में तेजी नहीं दिखाई। भारत में शुरुआत में यही हाल था। 22 मार्च तक यहां सिर्फ 17000 लोगों के टेस्ट ही हो पाए थे। इस मामले में सबसे काबिलेतारीफ काम दक्षिण कोरिया ने किया, वहां करीब 2.95 लोगों की जांच की गई और समय रहते स्थिति संभल गई। भारत और इटली को भी इससे सीखना चाहिए और कोरोना संक्रमण की जांच में तेजी लानी चाहिए ताकि इस वायरस को और फैलने से रोका जा सके।
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