मणिपुर में देश की पहली ट्रांसजेंडर फुटबॉल टीम बनाई गई है। इस टीम ने इंफाल में 8 मार्च को हुए Queer Games कार्यक्रम में पहली बार मैदान में कदम रखा। टीम में उन सभी खिलाड़ियों को जगह मिली है जो फुटबॉल खेलने में किसी से भी कम नहीं हैं, लेकिन समलैंगिक होने के कारण किसी ने उन्हें अपना हुनर दिखाने का मौका नहीं दिया।

इंफाल के एनजीओ ने तैयार की टीम
इस ट्रांसजेंडर टीम को तैयार किया है इंफाल के एक एनजीओ ‘या ऑल’ ने। 2017 में शुरू हुए इस एनजीओ को LGBTQ समुदाय के लोग चलाते हैं। एनजीओ का उद्देश्य मणिपुर में बसे समलैंगिक लोगों के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित माहौल तैयार करना है। यह एनजीओ लोगों का मानसिक स्वास्थ्य सुधारने और उनके कल्याण के लिए भी काम करता है। हालांकि संसाधनों की कमी के कारण यह काम उसके लिए मुश्किल रहा, लेकिन कहते हैं न, जहां चाह वहां राह।
ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों ने संभाली जिम्मेदारी
इस अनोखी फुटबॉल टीम की कप्तानी स्ट्राइकर निक के हाथों में है, जबकि दूसरे स्ट्राइकर चाकी को उपकप्तान बनाया गया है। पूजा और सेलेबी को गोलकीपर बनाया गया है। वहीं नेली, मैक्स, थोई और सैंतोई टीम के मिडफील्डर हैं। स्ट्राइकर लेम भी इस टीम में शामिल हैं। केके, लाला, क्रिस्टीना, थोई एस और मिलर ने डिफेंडर की जिम्मेदारी संभाली है। एनजीओ के संस्थापक सदाम हंजबम ने बताया कि यह मैच खेलकर सभी खिलाड़ी बहुत खुश नजर आए। उनकी खुशी हमें ऐसे और भी मैच आयोजित कराने की प्रेरणा देती है।
समलैंगिकों के प्रति बदले समाज की सोच
सदाम हंजबम के मुताबिक, हमारा समाज किन्नरों को अपना हिस्सा मानने में हिचकिचाता है। यही वजह है कि फुटबाल के ये खिलाड़ी अपना हुनर नहीं दिखा पाते हैं। इन मैचों का उद्देश्य यही है कि ये खिलाड़ी अपने खेल का मजा ले सकें और दुनिया को दिखा सकें कि साथ मिलकर ये क्या कर सकते हैं। इससे हमें समाज में किन्नरों के प्रति सोच में बदलाव लाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि हम सभी बड़ी फुटबॉल टीमों से इनकी मदद करने की अपील करते हैं। ऐसा करने से हमें फुटबॉल के कई नए टैलेंट देखने को मिलेंगे। समाज में हो रहे भेदभाव और तीसरे समुदाय के प्रति लोगों की सोच के चलते इन लोगों की प्रतिभा सामने नहीं आ पाती है।
कलाबाजियों में माहिर हैं चाकी
टीम के उपकप्तान मणिपुर के चाकी हुईड्रोम फुटबाल के साथ कई तरह की कलाबाजियां करने में माहिर हैं, पर उन्हें किसी भी टीम से खेलने का मौका नहीं मिला, क्योंकि वे तो महिलाओं के साथ खेल सकते हैं और न ही पुरुषों के साथ। चाकी के मुताबिक, फुटबाल के टूर्नामेंट लड़कों या लड़कियों के लिए आयोजित किए जाते हैं। इनमें ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों के लिए कोई जगह नहीं होती है। चाकी को हमेशा यह बात अखरती थी कि तीसरी कैटेगरी के खिलाड़ियों के लिए कोई टूर्नामेंट क्यों नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि बाकी खिलाड़ियों को भी सामने आना चाहिए ताकि वे खुद में सुधार करके एक अच्छी और संतुलित ट्रांसजेंडर फुटबाल टीम बना सकें।
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